Thursday, November 21, 2024
ISRO ने लांच किया नए जमाने का सैटेलाइट-NVS-01,
क्यों खास है ? भारत का ये रीजनल नेविगेशन सिस्टम
GSLV-F12 या NVS-01 मिशन का प्रक्षेपण सोमवार सुबह 10:42 बजे श्रीहरिकोटा से किया गया। इस जीएसएलवी
मिशन को लगभग 2232 किलोग्राम वजन वाले एनवीएस-01 नेविगेशन सैटेलाइट को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर
ऑर्बिट में तैनात करने के लिए डिजाइन किया गया है।
NVS 01 में पहली बार देशी परमाणु घड़ी का इस्तेमाल किया गया है. अब तक जो सैटेलाइट लांच किए जाते थे, उनमें
आयात की हुई परमाणु घड़ी लगाई जाती थी.
इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन ने सोमवार को NavIC को लांच कर दिया. इसका उद्देश्य देश की नौवहन क्षमताओं को बढ़ाना है. यह पहले से अधिक सटीक नेविगेशन और पॉजीशनिंग की जानकारी देगा. नेविगेशन और समय के साथ देश में नागरिक उड्डयन क्षेत्र की जरूरतों को देखते हुए यह प्रणाली विकसित की गई है. आने वाले वक्त में यह GPS का विकल्प बनेगा और अमेरिका पर हमारी आत्मनिर्भरता को खत्म कर देगा.
इसरो ने सोमवार को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष स्टेशन से जीएसएलवी के जरिए NavIC को लांच किया. यह दूसरी पीढ़ी का नौवहन उपग्रह है. खास बात ये है कि ये उपग्रह भारत के आसपास तकरीबन 1500 किमी रेंज तक नेविगेशन, पॉजीश्निंग और टाइमिंग सर्विस देगा. 2232 किलो वजनी ये सेटेलाइट अब तक तारामंडल का सबसे वजनी सेटेलाइट होगा.
NavIC द्वितीय श्रेणी का सैटेलाइट है, इसका पहली बार प्रक्षेपण 2013 में किया गया था. अब तक तारामंडल में 8 नाविक उपग्रह थे, इनमें से कुछ ने काम करना बंद दिया था. अब इसरो ने जिस नए जमाने के सैटेलाइट को लांच किया है यह अब तक लांच हो चुकीं सारी सैटेलाइट में सबसे ज्यादा खास है. पिछले उपग्रहों की तुलना में यह अत्यधिक वजनी भी है. इसमें पहली बार देशी रुबिडियन परमाणु घड़ी का इस्तेमाल किया गया है. अब तक जो सैटेलाइट लांच किए जाते थे, उनमें आयात की हुई परमाणु घड़ी लगाई जाती थी.
हर सैटेलाइट में एक परमाणु घड़ी होती है. अलग-अलग ऑर्बिट में स्थित इन्हीं सैटेलाइट में लगी यह परमाणु घड़ी ही पॉजीशनिंग की जानकारी देती है. जब तीन से ज्यादा सैटेलाइट की परमाणु घड़ी खराब हो जाती है तो फिर रिप्लेसमेंट सैटेलाइट को लांच करना पड़ता है. अब तक IRNSS यानी इंडयिन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम के सिर्फ चार उपग्रह ही सटीक भविष्यवाणी कर पा रहे थे. खासबात ये है कि परमाणु घड़ी एक सेकेंड के लाखों हिस्सों की गणना करने की क्षमता रखती है, ताकि पॉजीशनिंग का आकलन बेहद सटीक हो.
NavIC सैटेलाइट आसमान में लंबे समय तक काम करता रह सकता है. इसरो की ओर से जिस द्वितीय श्रेणी के उपग्रह को लांच किया गया है इसकी उम्र 12 साल है, जबकि अब तक जो उपग्रह लांच किए गए हैं उनकी लाइफ 10 साल तक ही होती थी. NavIC को लांच किया जाना इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि तारामंडल के तीन पुराने उपग्रह 10 साल की उम्र पूरी करने वाले थे.
भारत में अभी अमेरिका के GPS यानी ग्लोबल पॉजीशनिंग सिस्टम का उपयेाग किया जा रहा है, जिसकी सटीकता तकरीबन 70 प्रतिशत तक रहती है. भारत का ये क्षेत्रीय नेवीगेशन सिस्टम 90 से 95 प्रतिशत तक सटीक साबित हो सकता है. जब ये पूरी तरह से काम करना शुरू कर देगा तो भारत की अमेरिका पर आत्मनिर्भरता कम हो जाएगी. अमेरिका का जो जीपीएस सिस्टम है ये अमेरिकी सरकार और वहां की वायुसेना द्वारा संचालित किया जाता है.
भारत अकेला ऐसा देश है, जिसके पास अपना रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम है. यह बिल्कुल GPS की तरह ही काम करेगा. दुनिया में अभी चार देश ऐसे हैं जिनके पास ग्लोबल रीजनल नेविगेशन सिस्टम है, इनमें अमेरिका का जीपीएस, रूस का GLONASS, यूरोप का Galileo और चीन का Bedou है.
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