टाइटैनिक

user 14-May-2023 रोचक तथ्य

टाइटैनिक

टाइटैनिक जहाज डूबने का कारण- एक रहस्य

टाइटैनिक ये वो नाम हैं, दोस्तो जैसे ही हम ये नाम सुनते है तुरंत ही उस महाकाय विशाल जहाज की तस्वीर सामने आ जाती हैं, जो अचानक ही उस अंधेरी रात में समुंदर की गहराई में समा गया था,और आज तक उसके डूबने का कारण एक रहस्य ही बना हुआ हैं,जिसके डूबने के बाद अरबों रुपए का नुक़सान तो हुआ ही साथ ही हमने न जाने कितनी बेगुनाह जाने भी गवादी,दोस्तों आज हम इसी टाइटैनिक जहाज के रहस्य के बारे मे जानने कि कोशिश करेंगे, तो आइए शुरु करते हैं, दोस्तो लगभग111 साल पहले टाइटैनिक एक अंधेरी रात के वक्त एक आइसबर्ग,यानी हिमखंड  से टकरा गया था,उस वक्त अधिकांश यात्री नींद के आगोश में थे,सूत्रो के मुतबिक़

हादसे के वक्त टाइटैनिक 41 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से,इंग्लैंड के साउथम्पैटन से अमेरिका के न्यूयार्क की ओर बढ़ रहा था,और महज तीन घंटे के अंदर 14 और 15 अप्रैल, 1912 की मध्य रात्रि में टाइटैनिक अटलांटिक महासागर में समा गया और जिस जहाज के कभी नहीं डूबने की चर्चा थी, वह डूब गया सूत्रो के अनुसार हादसे में करीब 1500 लोग भी मारे गए आपकी जानकारी के लिए हम बताना चाहते हैं, कि इस महाविनाशक हादसे को करीबन 110 साल बीतने के बाद भी पूरे इतिहास में सबसे बड़ा समुद्री हादसा माना जाता है,और यहां तक कहा जाता हैं कि हादसे की जगह से अवशेषों को एनालिसिस और जाच पूरी होने के बाद, सितंबर, 1985 में हटाया गया था. हादसे के बाद, सूत्रो के मुतबिक़ कनाडा से 650 किलोमीटर की दूरी पर 3843 मीटर की गहराई में जहाज दो भागों में टूट गया था,और दोनों हिस्से एक दूसरे से 800 मीटर दूर पाए गए थे,इस हादसे के 110 साल बाद भी आज भी इस हादसे को लेकर रहस्य बना हुआ है,कम्पनी के ओनर्स द्वारा

इस विशालकाय जहाज के बारे में यहां तक कहा गया था कि यह जहाज कभी डूब नहीं सकता, ईश्वर भी इसे डूबा नहीं सकते, इस भरोसे के पीछे की अपनी भी अलग वजहें थीं, आइए जानते हैं दरअसल,रियो डि जेनेरियो की फ़ेडरल यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ़ नेवल एंड ओसन इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर,और इंजीनियर अलक्जेंडर द पिन्हो अल्हो ने बताया, "इंजीनियरिंग के लिहाज से देखें तो यह डिज़ाइन के आधार पर विकसित हुआ,पहला जहाज था इस जहाज में कई वाटर टाइट कंपार्टमेंट बनाए गए थे,यानी अगर जहाज का कोई कमरा पानी से भर जाए तो वह दूसरे कमरे को डूबा नहीं सकता था,इस जहाज को तैयार करने के दौरान कुछ मुश्किलें भी हुई थीं, जहाज की ऊंचाई कितनी रखी गई, ताकि बिजली के तार और पानी के पाइप ठीक से काम करते रहें, इस पर काफी सोच विचार करने के बाद सॉल्यूशन प्राप्त हुआ,प्रोफेसर अल्हो के मुताबिक़, "इस पर सोच विचार करने के बाद उन लोगों ने जहाज की ऊंचाई निर्धारित की थी, पानी भरने की स्थिति में भी उन लोगों का आकलन था,कि पानी छत की ऊंचाई तक नहीं पहुंच पाएगा,उन्होंने छत पर भी सुरक्षित कंपार्ट्मेंट्स बनाए थे, ताकी किसी भी कीमत पर जहाज डूबना नहीं चाहिए,लेकिन तब किसी ने आइसबर्ग से ज़ोरदार टक्कर के बारे में सोचा नहीं होगा,प्रोफेसर ने बताया,टक्कर इतनी ज़ोरदार थी कि जहाज की मुख्य बॉडी की आधी लंबाई तक सुराख हो गया था. ऐसी परिस्थिति में पानी छत तक पहुंच गया था,जहाज में पानी पूरी तरह से भरने लगा था और ऐसी स्थिति में बचाव संभव नहीं होता है,आप पानी निकालने के लिए सभी पंप को सक्रिय कर सकते हैं, तमाम कोशिशें कर सकते हैं लेकिन पानी जिस रफ़्तार से अंदर आ रहा होता है, उसी रफ्तार से बाहर नहीं निकाला जा सकता था,जहाज बनाने और नेविगेटर सिविल इंजीनियर थियेरी बताते हैं,टाइटैनिक का प्रचार इस तरह से किया गया था कि यह डूब नहीं सकता है, इसकी वजह यह थी कि बहुत सारे तहखाने बनाए थे,जो वाटर टाइट दीवारों से बने थे, तहखाने की दो कतारों में पानी भरने की स्थिति में जहाज डूबने वाला नहीं था,लेकिन आइसबर्ग से टक्कर ने जहाज को काफी नुकसान पहुंचाया और वाटरटाइट कंपार्टमेंट्स की कई दीवारें नष्ट हो गई थीं,फ्लूमिनेंसे फ़ेडरल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और ट्रांसपोर्ट इंजीनियर ऑरिलो सोरास मूर्ता के मुताबिक,टाइटैनिक के वाटर टाइट कंपार्टमेंट को बंद करने की व्यवस्था भी ठीक से काम नहीं कर रही थी,उस दौर में जहाज को बनाने में प्रयुक्त धातु मौजूदा स्टील जितनी मज़बूत नहीं थी,सोरास मूर्ता ने बताया,ज़ोरदार टक्कर के बाद जहाज के ढांचे में भी बदलाव आ गया था, दरवाजे बंद नहीं हो रहे थे, और वो फंस गए थे,उस वक्त भी टाइटैनिक शुद्ध स्टील से बनाया गया था लेकिन तब का स्टील आज के स्टील जितना मज़बूत नहीं होता था,साओ पाओलो के मैकेंजी पेर्सेबायटेरियन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और धातु विज्ञान के इंजीनियर जान वैतावुक बताते हैं, कि 1940 के दशक तक समुद्री जहाज की मुख्य बॉडी, धातु के शीट से बनता था,हालांकि बाद में इन जहाजों की मुख्य बॉडी बनाने में धातुओं को पिघलाकर इस्तेमाल किया जाने लगा,प्रोफेसर बताते हैं,तब से लेकर अब तक तकनीक और सामग्री काफी बदल गई है, अब धातु को पिघलाकर शीटों को जोड़ा जाता है,स्टील बनाने में भी कार्बन का इस्तेमाल कम होने लगा है, और मैगनीज का इस्तेमाल बढ़ने लगा है इस तरह आज का स्टील बहुत ज़्यादा मजबूत होता है,वैतावुक के अनुसार, आज के समुद्री जहाज पानी, समुद्री लहरों के उतार चढ़ाव और समुद्री तूफ़ानों से तालमेल बिठाने में कहीं ज़्यादा सक्षम होते हैं,बड़ी दुर्घटनाओं के बाद, उसकी वजहों में हमेशा मानवीय ग़लतियां मिलती हैं,दोस्तो आपकी जानकारी के लिए हम बताना चाहते हैं,कि विशेषज्ञों के अनुसार, आइसबर्ग से भरे इलाके से गुजरने की मुश्किलों के बीच भी इस पर जल्दी से सफ़र पूरा करने का अत्यधिक दबाव था, कैप्टन को अत्यधिक प्रेशर मे अधिक स्पीड के साथ आगे लगातर चलने का आदेश मिला था, बात दरअसल यह है कि,दरअसल यह दबाव 'ब्लू बैंड' को हासिल करने का था,1839 में शुरू हुआ यह सम्मान अटलांटिक महासागर के सबसे तेजी से पार करने वाले जहाज को मिलता था, टाइटैनिक को इस सम्मान का सबसे ज़ोरदार दावेदार माना गया था,प्रोफेसर अल्हो ने बताया, उस दौर के हिसाब से टाइटैनिक को बनाने में सबसे बेहतरीन इंजीनियरिंग और तकनीक का इस्तेमाल किया गया था,उस वक्त समुद्री जहाज को बनाने के लिए दुनिया की बड़ी कंपनियों के बीच होड़ थी, इंग्लैंड और जर्मनी के बीच उस वक्त सबसे लंबे और तेज़ गति से चलने वाले जहाज बनाने की होड़ थी,सबसे विशाल और तेज़ जहाज को आधिकारिक तौर पर ब्लू बैंड मिलता था, किसी भी जहाज के लिए ये उपलब्धि हासिल करने के लिए पहली यात्रा को सबसे अहम माना जाता था,अल्हो के मुताबिक, पहली यात्रा के वक्त जहाज की स्थिति सबसे बेहतर होती है, पहली यात्रा में जहाज सबसे तेज़ गति को हासिल कर सकता है,और टाइटैनिक ने भी तेज गति हासिल करने की कोशिश की थी,इस हादसे में जो लोग बचे उनमें कई लोगों ने बताया कि जहाज के कैप्टन को रास्ते में आसपास के इलाके में हिमखंड होने की सूचना मिल गई थी, लेकिन उन्होंने जहाज की गति धीमी नहीं की, क्योंकि वे अटलांटिक महासागर को सबसे तेज़ गति से पार करने के लक्ष्य को हासिल करना चाहते थे,टाइटैनिक अकेला नहीं था, इस जहाज को चलाने वाली कंपनी व्हाइट स्टार लाइन कंपनी ने 20वीं शताब्दी की शुरुआत में बेलफास्ट शहर के हारलैंड और वोल्फ शिपयार्ड को तीन जहाजों को तैयार करने का ऑर्डर दिया था,उम्मीद की जा रही थी, कि विश्वस्तरीय डिज़ाइन टीम द्वारा निर्मित ये तीनों जहाज दुनिया के सबसे लंबे, सुरक्षित और सुविधाओं से युक्त होंगे,इंजीनियर स्टंप ने बताया,इन परियोजनाओं को उस दौर में ख़ूब प्रचारित भी किया गया था,1908 से 1915 के बीच निर्मित इन जहाजों को ओलंपिक क्लास के जहाज कहा गया था,पहले दो जहाज को तैयार करने का काम शुरू हुआ था, 1908 में ओलंपिक और 1909 में टाइटैनिक का. तीसरे जहाज जाइगेन्टिक का उत्पादन 1911 में शुरू किया गया,टाइटैनिक ने अपनी पहली यात्रा 10 अप्रैल, 1912 को शुरू की थी, साउथम्पैटन बंदरगाह के बाहर यह एक अन्य जहाज से टकराते टकराते बचा था,14 अप्रैल को यह ऐतिहासिक हादसे का शिकार हो गया,मूर्ता कहते हैं, कि आज के जहाजों की तुलना में वह नौका भर था,टाइटैनिक की लंबाई 269 मीटर थी, चालक दल और यात्रियों को मिलाकर इस पर करीब 3300 लोगों के ठहरने की सुविधा थी,आज की सबसे बड़े समुद्री यात्रियों का जहाज वंडर ऑफ़ द सी है, जो 362 मीटर लंबा है,और इस जहाज पर चालक दल के 2300 सदस्यों के साथ सात हज़ार यात्री यात्रा कर सकते हैं,टाइटैनिक हादसे में करीब 1500 लोगों की मौत हुई थी, इसके बाद समुद्री जहाजों की सुरक्षा व्यवस्था को बेहतर करने की कोशिशें शुरू हुईं, समुद्री जहाजों की सुरक्षा के लिए इस हादसे के बाद से रडार जैसे उपकरणों का इस्तेमाल शुरू किया गया,प्रोफेसर अल्हो बताते हैं,द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद ही रडार का इस्तेमाल शुरू हुआ था,इससे पहले सब कुछ देखने पर निर्भर था,एक नाविक को उस ऊंचाई पर बैठाया जाता था,जहां से वह सामने आने वाले हिमखंड वैगरह को देखकर अलर्ट कर सके,यही तरीका था, जहाज के तेज़ गति से चलने की स्थिति में यह सुरक्षित नहीं था,टाइटैनिक हादसे के सुरक्षा के प्रावधानों पर ज़ोर दिया गया, सूत्रो के अनुसार टाइटैनिक हादसे में बहुत सारे लोगों की मौत इसलिए हुई थी क्योंकि उनके लिए लाइफ़ बोट नहीं थे,प्रोफ़ेसर बताते हैं, कि यह जहाज कभी डूब नहीं सकता है, इस धारणा के चलते जहाज में आधे ही लाइफ़बोट रखे गए थे, यही सबसे बड़ी मूर्खता थीं,वहीं मूर्ता ने बताया, समुद्री जहाजों की सुरक्षा के लिहाज से यह हादसा एक अहम पड़ाव साबित हुआ, और यही ओवर कॉन्फिडेंस मौत के आंकड़ों को बढाने का बहुत बड़ा कारण माना गया है,तो दोस्तो  इसी प्रकार कि बिजनस सम्बन्धी और रोचक जानकारी हेतु आज ही लॉग ऑन करे बिजनेस खबरी डॉट कॉम पर और साथ ही हमारे यू ट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें ,और याद रखे बिजनेस खबरी डॉट कॉम एक लोकल बिजनेस सर्च इंजन एवम् मार्केटिंग पोर्टल  है जो हमारे व्यापारी भाईयो की मदद हेतु। मेक इन इंडिया कि तर्ज पर बनाया गया है

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